इन्हें देखता हूँ
तो ठेहेर सा जाता हूँ मैं
सोचता हूँ इनमें छिपे जज़्बात लिखूं
या खूबसूरत शाम के बाद छाई
कोई काली घनेरी रात लिखूं
पलकें उठा कर जब देखती हो
मानो ऐसा लगता है
कुछ केहना चाहती हो तुम्हारी नज़र
मगर फिर गुमसुम सी रह जाती हो
सोचता हूँ इनहे हसीन अंदाज़ लिखूं
या असीम गहराई में छिपे
प्रशांत-ए-राज़ लिखूं
इनमे झाँको तो एक आग दिखाई देती है
यूँ लगता है के मानो खुद को जल रहीं हों
सोचता हूँ इन्हें एक मशाल लिखूं
पर फिर इनकी 'माया' में खो जाता हूँ
तुम्ही मुझे बता दो के मैं क्या लिखू
तो ठेहेर सा जाता हूँ मैं
सोचता हूँ इनमें छिपे जज़्बात लिखूं
या खूबसूरत शाम के बाद छाई
कोई काली घनेरी रात लिखूं
पलकें उठा कर जब देखती हो
मानो ऐसा लगता है
कुछ केहना चाहती हो तुम्हारी नज़र
मगर फिर गुमसुम सी रह जाती हो
सोचता हूँ इनहे हसीन अंदाज़ लिखूं
या असीम गहराई में छिपे
प्रशांत-ए-राज़ लिखूं
इनमे झाँको तो एक आग दिखाई देती है
यूँ लगता है के मानो खुद को जल रहीं हों
सोचता हूँ इन्हें एक मशाल लिखूं
पर फिर इनकी 'माया' में खो जाता हूँ
तुम्ही मुझे बता दो के मैं क्या लिखू
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