Saturday, 8 April 2017

चल कहीं दूर चलते हैं


चल कहीं दूर चलते हैं
हकीकत और ख्वाब के बीच जो फासला है
आज वहां मिलते हैं
चल कहीं दूर चलते हैं

ठहर सी गयी है ज़िन्दगी
इस इश्क़ में
चल एक दूजे की बाहों में
हम आज पिघलते हैं
चल कहीं दूर चलते हैं

यूँ ही देखते देखते
ना गुज़र जाए ज़िन्दगी
इन बीतते पलों की
आज कुछ हसीन यादें बुनते हैं
चल कहीं दूर चलते हैं

हर मोड़ पे एक सवाल लिए
खड़ी है जिंदगी
चल हम आज उनके जवाब ढूंढते हैं
चल कहीं दूर चलते हैं

No comments:

Post a Comment